kaisa pitaa ka pyaar haiकैसा पिता का प्यार है
कैसा पिता का प्यार है
नपाई से है यह आपार
एकलोता बेटा देकर है
मुझ नीच का किया उधार - २
कितना बड़ा वो दर्द था
पिता भी जो मूँह फेर लिये
हर घाव जो येशु ने सहा
लाया सन्तान महिमा के
देखो उसे जो क्रूस पर
कांधों पर उसके मेरा पाप
लाज भरी मेरी आवाज
तिरस्कारी दुष्टों के साथ
जकड़े उसे था मेरा पाप
जब तक हासिल न हुवा उधार
मेरी जान लाई बुझती साँस
मैं जानूँ काम हुवा समाप्त
घमंड मेरा कुछ भी नहीं
न तौफे बल या बुद्धि मैं
गर्व, करूँ सिर्फ यीशु के
मृत्यु पुनरुथान में
क्यों पाऊँ में उसका इनाम
इसका कोई ऊतर नहीं
पर समझे मेरे दिलों जान
उन घावें ने चुकाया है दाम