Prabhu ka prem hay vohप्रभु का प्रेम है वोह कैसा प
प्रभु का प्रेम है - वोह कैसा प्रेम है
कितना है गहरा और विशाल
जीवन के क्लेश में बोझों के बीच में
पाता हूँ तेरा प्रेम का हाथ (२)
१. थकते मुर्झाते है मरुभूमि में
टूटी है आशाएँ जीवन में (२)
नया जीवन देकर नई शक्ति देकर
आकाश के बीच में उठाता तेरा प्रेम (२)
२. छोड़ देते अपने ही निन्दित करके
इलज़ामों की बारिशों को तरके (२)
माता के जैसे हाथों को थामकर
दिल से लगाए क्रूस का प्रेम (२)